वैष्णव खाना

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मेरा जन्म एक वैष्णव परिवार में हुआ। हमारे घर में कभी भी प्याज लहसुन का इस्तेमाल नहीं होता था। इसकी वजह से जब मैं बड़ी हुई और स्कूल गयी तब मुझे लंच के समय थोड़ी दिक्कत होती थी, क्योंकि आमतौर पर हम सब दोस्त साथ खाना खाते थे और मैं किसी की भी सब्जी, जिसमें प्याज-लहसुन हो, नहीं खा पाती थी क्योंकि उस खाने में मुझे बहुत महक आती थी। दोस्त लोग मेरा मजाक भी बनाते थे कि आगे जाकर क्या करोगी, कैसे बाहर खाना खाओगी जब पढ़ने के लिए बाहर जाओगी, नौकरी करोगी इत्यादि। उस वक्त मैंने ऐसा अनुभव किया कि मेरे खानदान के अलावा सभी लोग प्याज लहसुन खाते थे, यहाँ तक कि मेरे ब्राह्मण दोस्त भी प्याज लहसुन खाते थे। तब मुझे लगा शायद यह कुछ ख़ास परंपरा है जो अग्रवालों के घर पर ही होती है। और यह सच है कि जब मैं अपनी पढाई के लिए और रिसर्च के लिए घर से बाहर निकली तो भारत में ही मुझे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई बार मैंने सिर्फ दूध ब्रेड से काम चलाया क्योकि मुझे प्याज लहसुन के खाने में बहुत महक आती थी। मेरी यह अग्रवालों वाली भ्रान्ति शादी के बाद टूट गई क्योंकि हमारी ससुराल में प्याज लहसुन खाया जाता है:) और वक्त के साथ मैंने प्याज खाना तो सीख लिया लेकिन लहसुन का खाना खाने में अभी भी समस्या होती है।

अपने विदेश प्रवास में मैंने जाना कि भारत के ज्यादातर प्रान्तों जैसे कि केरल, तमिलनाडू, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में कई लोग बिना प्याज लहसुन का खाना खाते हैं। और पूजा के खाने में खासतौर पर प्याज लहसुन नहीं डाला जाता है। यानि कि जो लोग रोजाना में प्याज लहसुन खाते भी हैं वो पूजा के या फिर भोग के खाने में प्याज लहसुन का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जब इस बारे में लोगों से पूछा तो बहुत सारी राय मिलीं लोगों की, और कुछ तो काफी मजेदार थीं। जैसे कि जब भगवान के भोज के लिए सब्जी फल जा रहे थे तो प्याज लहसुन छटक के थाल से नीचे गिर गए और भोग में जाने से रह गए इसलिए यह पूजा के खाने का हिस्सा नहीं बनते। किसी ने कहा कि जब भोग की सब्जियाँ आयीं तो प्याज और लहसुन जमीन के नीचे ही रह गए और भोज में नहीं गए तो पूजा के खाने का हिस्सा नहीं बन पाए । कुछ और लोगों का मानना है कि प्याज और लहसुन में बास होती है जो ईश्वर को पसंद नहीं।

हर बात के पीछे वैसे तो लॉजिक दिख रहा है लेकिन फिर भी बात पूरी तरह समझ नहीं आई। अब जब इस विषय पर उत्सुकता और बढ़ी तो मैंने इस पर कुछ अध्ययन किया। जो मुझे समझ आया वो यह है कि प्याज और लहसुन दोनों में ही सल्फर नाम का एक खनिज पाया जाता है जिससे इनमें बहुत तेज गंध होती है। इसी वजह से इनका इस्तेमाल खासतौर पर पूजा के खाने में नही किया जाता जिससे आपका मन साफ हो और एकाग्रता बनी रहे। बार बार मुंह से बास आने पर ध्यान उस तरफ जाता है और एकाग्रता भंग होती है। यही वजह है कि बहुत सारे लोग पूजा के खाने में हींग का प्रयोग भी नहीं करते हैं।

हालांकि पौराणिक ग्रंथों में ऐसा लिखा है कि लहसुन अमृत तुल्य है (लहसुन का वर्णन देवासुर संग्राम के दौरान आता है - कहानी ये है कि जब समुद्र मंथन के बाद अमृत निकला तो राहु ने चुपके से उसे पीना चाहा। तब विष्णु जी ने उसका गला काट दिया। इस दौरान कुछ अमृत की बूँदें पृथ्वी पर छिटक गयीं, और उनसे बना लहसुन !) आयुर्वेद में भी लहसुन का कई जगह वर्णन है। लहसुन को बहुउपयोगी रसायन बताया गया है और इसके प्रयोग को उत्तम स्वास्थ्य हेतु आवश्यक बताया गया है।

तो मुझे प्याज लहसुन न खाने का जो कारण सबसे सटीक लगता है वो शायद इनकी महक का बहुत तेज होना है। तो शायद सल्फर की वजह से ही बहुत सारे शाकाहारी लोग प्याज लहसुन नहीं खाते हैं।

बिना प्याज लहसुन का खाना वैष्णव भोजन/खाना कहलाता है। कुछ जगहों पर इसे स्वामीनारायण भोजन भी कहते हैं। पूजा-पाठ और भगवन के खाने में विशेष रूप से प्याज लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। तीज- त्योहारों में और कई बार पार्टियों में भी ऐसा खाना बनाया जाता है, और ख़ास तौर पर व्रत के दिनों में भी।

मैं तो पूरे साल रोज नए नए व्यंजन बिना प्याज लहसुन के बना सकती हूँ। कुछ व्यंजन आपके लिए भी!

शुभकामनाओं के साथ,
शुचि


कुछ स्वादिष्ट चटपटी वैष्णव चाट


कुछ स्वादिष्ट वैष्णव करी


कुछ स्वादिष्ट वैष्णव सूखी सब्जियाँ

आप किसी भी प्रकार के रोटी पराठे और पूरी आदि इन स्वादिष्ट वैष्णव व्यंजनों के साथ परोस सकते हैं. किसी भी भरवाँ पराठे को बिना प्याज डालें बनाया जा सकता है, जैसे पनीर पराठा, आलू का पराठा, गोभी का पराठा, राजस्थानी मसाला पराठा इत्यादि!