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हल्दी गुणों का खजाना है. हल्दी को संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं. यह अदरक के परिवार जिंजीबेरेसी (Zingiberaceae) की सदस्य है. हल्दी का वानस्पतिक नाम Curcuma longa (कुरकुमा लोंगा) है.
हल्दी कंद है जिसे बड़ी आसानी से घर पर उगाया जा सकता है. हल्दी का पौधा बहुवार्षिक होता है, यह गर्मी की फसल है लेकिन इसे तेज धूप पसंद नहीं है. हल्दी के पत्ते, तना और कंद सभी का प्रयोग खाने और औषधी बनाने में किया जाता है. नीचे लगी फोटो में हमारे घर पर उगाई गयी हल्दी के पौधे की कुछ अवस्थाएं दिखाई गयी हैं. हम हल्दी के पत्तों, तने और कंद सभी का उपयोग खाने में करते हैं.
हल्दी के अन्दर एक ख़ास रसायन होता है जिसे करक्यूमिन(curcumin) कहते हैं. यह रसायन गहरे पीले रंग का होता है. जब इसमें क्षार (base/ alkali) मिलाया जाता है तो यह बादामी-लाल रंग का हो जाता है. आप चाहें तो घर पर यह प्रयोग कर सकते हैं. हल्दी में खाने वाला सोडा, जिसे सोडियम बैकर्बोनेट कहते हैं, मिलाएं. थोडा पानी डालकर घोल बनायें. कुछ मिनट में यह लाल बादामी हो जायेगा.
हल्दी का जिक्र आयुर्वेद और सभी भारतीय पौराणिक किताबों में है. आयुर्वेद में हल्दी का उपयोग मसाले के साथ साथ औषधियों में भी किया गया है.
भारतीय खाने में हल्दी का प्रयोग सर्वज्ञात है. भारत के लगभग सभी प्रान्तों में रोजाना के खाने में हल्दी का इस्तेमाल होता है. दाल, सब्जी, से लेकर पराठे, अचार आदि सभी में हल्दी का इस्तेमाल होता है. भारतीय मसालदान में हल्दी का प्रमुख स्थान है.
भारतीय खाने में पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर लेकर दक्षिण तक हल्दी का खूब प्रयोग किया जाता है. नीचे कुछ ख़ास व्यनजन निमने हल्दी के उपयोग को बताया गया है.
अरहर दाल का प्रयोग पूरे भारतवर्ष में होता है. अरहर दाल उत्तरी भारत में रोजमर्रा में बनने वाली दाल है. इसके शौकीन अगर दो चार दिन तक अरहर नहीं खाते हैं तो उन्हें इस दाल की तलब लगने लगती है.......
आलू पोस्तो बहुत ही लोकप्रिय बंगाली व्यंजन है. आलू पोस्तो बनाने की यह विधि एकदम पारंपरिक बंगाली है. आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है और सभी को आलू बहुत पसंद होता है. इस बार नए अंदाज में बनायें यह सब्जी.
जाड़े के मौसम में उत्तर भारत में मौसमी सब्जियों से कई प्रकार के अचार बनाए जाते हैं. मुझे याद है मेरी दादी में फ़रवरी में जब जाड़े के बाद बसंत का मौसम दस्तक दे रहा होता था तो कई प्रकार के राई के अचार बनाती थीं, जिनमें मुख्य रूप से आलू का अचार और मूली का अचार होते थे . यह दोनों की अचार वो कांजी में बनाती थीं जिन्हे हम पराठे के साथ खाते थे..
मौसमी सब्जियों के साथ तैयार की जाने वाली यह चावल की डिश उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय है. गुलाबी जाड़ों में ताज़ा गाजर, मटर आदि के साथ तहरी के मज़े अलग ही हैं. तहरी को कई तरीके से बनाया जाता हा. कुछ लोग तहरी में सोयाबीन की बड़ी डालते हैं, जबकि कुछ परिवारों में तहरी में मूग की दाल की मंगोड़ियों से इसे बनाते हैं, वही उड़द की डाल की बड़ी के साथ भी तहरी बहुत स्वादिष्ट लगती है.