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हड़ को संस्कृत में हरीतकी कहते हैं। इसे और भी कई नामों से जाना जाता है। आयुर्वेद में हरीतकी की भूरी भूरी प्रशंसा है। बताया गया है कि एक बार भगवान इंद्र के मुख से एक बूँद अमृत पृथ्वी पर गिर गया और उसी दिव्य बूँद से सात जाति वाली हरीतकी उत्पन्न हुई।
हड़ रस में कसैली, विपाक में मधुर, गुण में रुक्ष है। इसके लिए कहा गया है कि इसमें लवण रस के अलावा अन्य पाँचों रसों (मधुर, अम्ल, कटु, कषाय, तिक्त) का समन्वय है। यह भोजन को पचाती है। हरीतकी यानि कि हड़ को त्रिदोषनाशक बताया गया है। मधुर रस होने से यह पित्त नाशक है, कटु और तिक्त रस होने से यह कफनाशक है और अम्ल रस होने से वातनाशक है।
हड़ के गुणों के आधार पर कहा जाता है - "कदाचित कुप्यति माता नोदरस्था हरीतकी" - अर्थात माता तो अपने बालक पर कभी रुष्ट हो भी सकती है, परन्तु पेट के अन्दर गयी हुई हड़ कभी भी कुपित नहीं होती।
हड़ के चूर्ण का खाने में प्रयोग होता है। त्रिफला चूर्ण में भी बहेड़ा और आँवला के साथ मुख्य रूप से हड़ का ही उपयोग किया जाता है।
हड़ का प्रयोग अचार बनाने में भी होता है। मुख्य रूप से नींबू के अचार में साबुत हड़ डाली जाती है जो बहुत पाचक होती है।
नींबू विटामिन सी का बहुत अच्छा स्रोत्र है। नींबू का यह खट्टा मीठा अचार खाने में तो बहुत स्वादिष्ट होता ही है साथ ही साथ पेट के लिए भी बहुत अच्छा है। ह्ड़ एक बहुत अच्छा पाचक है तो अगर आपको ह्ड़ आसानी से मिल जाए तो आप इसे ज़रूर डालें इस अचार में। हड़ और अदरक इस नींबू के अचार को बहुत गुणकारी बनाते हैं। कभी अगर बदहजमी हो या जी घबराये तो यह अचार तुरंत आराम देता है। मैं जब भी कभी यात्रा करती हूँ तो यह अचार ज़रूर रखती हूँ अपने साथ। तो आप भी बनाइए यह स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक अचार...आगे पढ़ें..
जानकारी का स्रोत- महर्षि वाग्भट रचित अष्टांगहृदयं एवं भावप्रकाशनिघंटु